
तिलक राज अरोरा, राष्ट्रीय सचिव, कैट

सुनील खत्री, प्रदेश प्रभारी युवा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश संयुक्त उद्योग व्यापार मंडल
नई दिल्ली, 30 जून 2025: जीएसटी (गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स) को लागू हुए 8 साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन व्यापारी आज भी इसके जटिल नियमों और अधिकारियों के दुरुपयोग से जूझ रहे हैं। “एक देश, एक टैक्स” का सपना देखकर जीएसटी को स्वीकार करने वाले व्यापारियों को अब लगता है कि उनके साथ धोखा हुआ है।
क्या खोया व्यापारियों ने?
- ट्रिब्यूनल का अभाव: राष्ट्रीय जीएसटी ट्रिब्यूनल का चेयरमैन तो नियुक्त हो चुका है, लेकिन राज्य स्तर पर अभी भी ट्रिब्यूनल स्थापित नहीं हुए हैं। इसके कारण व्यापारियों के करोड़ों रुपये के मामले लंबित पड़े हैं।
- धारा 129 का दुरुपयोग: छोटी-सी गलती पर भी व्यापारियों के माल से लदे वाहनों को जब्त कर लिया जाता है और भारी जुर्माना भरने के बाद ही छोड़ा जाता है।
- धारा 73/74 का अन्याय: सी-जीएसटी विभाग अक्सर धारा 74 का उपयोग करके व्यापारियों को “फ्रॉड” घोषित कर देता है, जबकि धारा 73 के तहत राहत मिलनी चाहिए।
- इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) की समस्या: धारा 16(2) के तहत, यदि विक्रेता व्यापारी भुगतान नहीं करता है, तो खरीदार व्यापारी को इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिलता, भले ही उसने पूरा भुगतान बैंक के माध्यम से किया हो।
क्या पाया व्यापारियों ने?
- कुछ हद तक फार्मों के जंजाल से मुक्ति मिली है।
- एकीकृत कर प्रणाली से पहले की तुलना में कुछ सुविधा हुई है।
व्यापारियों की मांग:
- राज्य स्तर पर जीएसटी ट्रिब्यूनल की तुरंत स्थापना।
- धारा 129 और 73/74 का दुरुपयोग रोका जाए।
- इनपुट टैक्स क्रेडिट के नियमों में सुधार।
- व्यापारियों के साथ विश्वासपूर्ण व्यवहार किया जाए, न कि उन्हें संदिग्ध मानकर परेशान किया जाए।
आगे क्या?
यदि सरकार ने जल्द ही व्यापारियों की समस्याओं का समाधान नहीं किया, तो वे बड़े पैमाने पर आंदोलन करने को मजबूर होंगे। “हम धोखा नहीं खाएंगे, हमारे अधिकार चाहिए!” का नारा जल्द ही सड़कों पर गूंज सकता है।