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बरेली भाजपा में सुलगती आग

संपादकीय:

बरेली के महापौर उमेश गौतम का हाल ही में एक भाजपा कार्यक्रम में दिया गया तीखा भाषण पार्टी के भीतर की उबलती नाराजगी को सतह पर ला चुका है। “आस्तीन के सांप” और “अपनों में गद्दार” जैसे प्रतीकात्मक शब्दों से भरा उनका बयान उनकी ही पार्टी के कुछ नेताओं, विशेष रूप से एक प्रभावशाली विधायक, पर अप्रत्यक्ष हमला था। भले ही गौतम ने किसी का नाम स्पष्ट रूप से नहीं लिया, लेकिन उनके निशाने का अंदाजा शहर की राजनीति को समझने वालों को बखूबी हो गया। हाल ही में एक कथित अपहरण और हमले की साजिश, जो बाद में झूठी साबित हुई, के इर्द-गिर्द घूमता यह प्रकरण भाजपा की आंतरिक एकता और उत्तर प्रदेश में इसके भविष्य पर गंभीर सवाल खड़े करता है।

इस विवाद की पृष्ठभूमि में एक अजीबोगरीब घटना है, जो कुछ हफ्ते पहले सामने आई थी। एक महिला ने कोतवाली में शिकायत दर्ज कराई थी कि उसका अपहरण कर जान से मारने की साजिश रची गई, जिसमें उसने एक वरिष्ठ भाजपा नेता के बेटे का नाम लिया था। शुरुआती जांच में यह एक राजनीतिक षड्यंत्र प्रतीत हुआ, जिसमें एक भाजपा विधायक पर गौतम की छवि खराब करने का आरोप लगा। मगर, पुलिस जांच ने तब सबको चौंका दिया, जब महिला ने स्वीकार किया कि उसने खुद ही यह सारा ड्रामा रचा और अपने ऊपर हमला करवाकर महापौर गौतम को फंसाने की कोशिश की। इस खुलासे ने न केवल राजनीतिक साजिशों की गहराई को उजागर किया, बल्कि गौतम को अपनी ही पार्टी के कुछ नेताओं के विश्वासघात से आहत भी किया।

गौतम ने हफ्तों तक इस मामले पर चुप्पी साधे रखी, लेकिन उनकी खामोशी आखिरकार एक भाजपा के सार्वजनिक समारोह में टूट गई। उनके बयान—“छिपे हुए दुश्मन” और सामने आने की चुनौती—न केवल उनकी निजी कुंठा को दर्शाते हैं, बल्कि एक दमदार जवाबी हमले का संकेत भी हैं। समारोह में एक विधायक को संबोधित करते हुए उनका यह तंज कि “आप तो मेरे फोटो पर दूसरी माला डालने का इंतजाम कर चुके थे,” उनकी गहरी नाराजगी को रेखांकित करता है। इस तरह का खुला टकराव, खासकर भाजपा जैसे अनुशासित संगठन में, असामान्य है और यह उस दरार की गहराई को दर्शाता है, जिसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं।

इस प्रकरण का मूल मुद्दा राजनीतिक दलों के भीतर गुटबाजी की समस्या को उजागर करता है। बरेली की भाजपा, जो लंबे समय से एक मजबूत गढ़ रही है, अब निजी महत्वाकांक्षाओं और आपसी टकराव का अखाड़ा बनने की कगार पर है। राजनीतिक विश्लेषक पहले ही 2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों पर इसके संभावित प्रभाव की चर्चा करने लगे हैं। गौतम और उनके विरोधियों के बीच यह तनाव, अगर अनियंत्रित रहा, तो पार्टी की एकता को कमजोर कर सकता है और उस क्षेत्र में इसके चुनावी प्रदर्शन को नुकसान पहुंचा सकता है, जहां यह ऐतिहासिक रूप से हावी रही है।

भाजपा के राज्य और राष्ट्रीय नेतृत्व को इस उभरते तूफान पर ध्यान देना होगा। आंतरिक मतभेद, अगर बढ़ने दिए गए, तो विपक्षी दलों को मजबूती दे सकते हैं और उन मतदाताओं को निराश कर सकते हैं, जो सत्तारूढ़ पार्टी से एकजुटता और सुशासन की अपेक्षा करते हैं। नेतृत्व को चाहिए कि वह इस तनाव को कम करने के लिए मध्यस्थता करे और इसे और गहराने से रोके। जहां तक गौतम का सवाल है, उनके लिए आगे का रास्ता अपनी ऊर्जा को बेहतर शासन और जनसेवा में लगाने में है, ताकि वे अपनी छवि को और मजबूत कर सकें।

यह घटनाक्रम न केवल बरेली की स्थानीय राजनीति के लिए एक सबक है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि सत्ता और महत्वाकांक्षा के खेल में एकता कितनी नाजुक हो सकती है। क्या भाजपा इस आंतरिक संकट को समय रहते सुलझा पाएगी, या यह 2027 में एक बड़ा राजनीतिक नुकसान बनकर उभरेगा? यह समय ही बताएगा।