
जैसे-जैसे मानसून की दस्तक करीब आ रही है, वैसे-वैसे बरेली नगर निगम का नाला सफाई अभियान विवादों में घिरता जा रहा है। करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद सड़कों पर फैली सिल्ट (गाद) ने न सिर्फ शहर की सुंदरता बिगाड़ी है, बल्कि लोगों की परेशानियों को भी बढ़ा दिया है।
नालों से निकली सिल्ट बनी नई मुसीबत
साफ-सफाई के नाम पर नालों से निकाली गई गाद को सड़क किनारे छोड़ दिया गया है। इससे न केवल कीचड़ फैल रहा है, बल्कि यह सिल्ट बारिश के दौरान दोबारा नालों में लौट जाती है, जिससे जलभराव की समस्या गंभीर हो जाती है। कई जगहों पर यह गाद खाली प्लॉटों में भराव के लिए बेची जा रही है, जो नियमों का सीधा उल्लंघन है।
नगरायुक्त की सख्ती भी बेअसर?
नगरायुक्त संजीव कुमार मौर्य खुद अभियान की निगरानी कर रहे हैं। उन्होंने ठेकेदारों को निर्देश दिया था कि सफाई के तुरंत बाद सिल्ट उठाई जाए, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है। कई जगहों पर हालात जस के तस बने हुए हैं, जिसके चलते नगर आयुक्त ने चेतावनी दी है कि लापरवाह ठेकेदारों को ब्लैकलिस्ट किया जाएगा।
स्वास्थ्य विभाग भी अलर्ट
गंदगी और जलभराव के चलते संक्रमण और बीमारियों के फैलने का खतरा बढ़ गया है। यही कारण है कि स्वास्थ्य विभाग भी सतर्क हो गया है। नगर निगम ने 20 जून 2025 तक प्रमुख नालों की सफाई पूरी करने का लक्ष्य तय किया है, लेकिन मई के अंत तक भी हालात में विशेष सुधार नहीं दिखा है।
करोड़ों खर्च, फिर भी समाधान नहीं
नगर निगम द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार:
- निर्माण विभाग बजट: ₹2.5 करोड़
- स्वास्थ्य विभाग बजट: ₹2.25 करोड़
- कुल खर्च: ₹4.75 करोड़
इतनी बड़ी राशि खर्च होने के बावजूद ग्राउंड लेवल पर सुधार नजर नहीं आता, जिससे जनता में नाराजगी बढ़ रही है।
समाधान क्या है?
- नगर निगम को चाहिए कि सिल्ट उठाने के लिए विशेष टीम गठित की जाए।
- ठेकेदारों की जवाबदेही सुनिश्चित की जाए और काम में कोताही पर त्वरित कार्रवाई हो।
- नागरिकों को भी चाहिए कि वे शिकायत पोर्टल या हेल्पलाइन के जरिए अपनी समस्याएं दर्ज कराएं।
निष्कर्ष
बरेली में नाला सफाई अभियान का उद्देश्य मानसून से पहले जलनिकासी व्यवस्था को सुधारना था, लेकिन यह खुद एक समस्या बनता जा रहा है। यदि समय रहते कड़ी कार्रवाई नहीं की गई, तो बारिश के दिनों में बरेलीवासियों को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।