
बरेली में हाल ही में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां पावर कारपोरेशन में सक्रिय एक शातिर गिरोह ने चेक के जरिए बिजली बिल जमा करने में बड़ा फर्जीवाड़ा किया। इस घोटाले में लाखों रुपये का नुकसान होने की बात सामने आई है। पावर कारपोरेशन के अधिशासी अभियंता हरीश कुमार ने कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज कराई है, जिसके बाद इस मामले की जांच शुरू हो गई है। आइए जानते हैं कि यह घोटाला कैसे हुआ और इसमें कौन-कौन शामिल हो सकता है।
घोटाले का तरीका: नकद लेकर चेक से खेल
इस घोटाले में गिरोह का तरीका बेहद चालाकी भरा था। यह गिरोह उपभोक्ताओं से बिजली बिल की नकद रकम लेता था और फिर अपने चेक से बिल जमा कर देता था। उपभोक्ताओं को रसीद भी थमा दी जाती थी, लेकिन असल में ये चेक बाउंस हो जाते थे क्योंकि खातों में पर्याप्त राशि नहीं होती थी। यह खेल लंबे समय से चल रहा था, लेकिन तब पकड़ में आया जब बैंक से चेक बाउंस की रिपोर्ट पावर कारपोरेशन को मिली।
सूत्रों के मुताबिक, इस फर्जीवाड़े में करीब 36 चेक पकड़े गए हैं। हैरानी की बात यह है कि इनमें से दो चेक पर हस्ताक्षर तक नहीं थे, फिर भी कैशियर ने इन्हें स्वीकार कर लिया। इन चेकों के नाम अनहर हुसैन, हिमांशु रंजन, ज्ञानेस्वरी देवी यागनिक, लव कुमार गौतम और कार्तिक इंटरप्राइजेज के अमित शर्मा जैसे लोगों के हैं, जो कनेक्शनधारकों से अलग हैं।
कर्मचारियों और अधिकारियों पर शक की सुई
इस घोटाले में पावर कारपोरेशन के कर्मचारियों और अधिकारियों की भूमिका भी संदिग्ध मानी जा रही है। बिना हस्ताक्षर वाले चेक को स्वीकार करना और इतने बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़े का लंबे समय तक चलते रहना इस बात का संकेत देता है कि अंदरूनी लोग भी इसमें शामिल हो सकते हैं। सूत्रों का कहना है कि बिजली चोरी के मामलों में राजस्व निर्धारण का पटल देखने वाला बाबू, कैशियर और एक अधिशासी अभियंता का कंप्यूटर ऑपरेटर इस खेल के बड़े खिलाड़ी हो सकते हैं।
इतना ही नहीं, संविदा पर तैनात एक कंप्यूटर ऑपरेटर की पावर कारपोरेशन में ठेके पर गाड़ियां भी चल रही हैं, जिनमें से एक पर एसडीओ चलते हैं। उसकी ठेकेदारी भी निगम में चल रही है, जिससे साफ है कि ऊपरी स्तर पर मिलीभगत के बिना यह संभव नहीं था।
अफसरों ने क्यों दबाया मामला?
सूत्रों के अनुसार, इस फर्जीवाड़े की जानकारी अफसरों को कई दिन पहले मिल गई थी, लेकिन इसे दबाने की कोशिश की गई। वजह थी पावर कारपोरेशन के चेयरमैन का दौरा। अफसर नहीं चाहते थे कि यह मामला उनके सामने आए। हालांकि, बाद में दबाव बढ़ने पर अधिशासी अभियंता हरीश कुमार को कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज करानी पड़ी।
पहले भी हो चुके हैं घोटाले
यह पहली बार नहीं है जब पावर कारपोरेशन में ऐसा फर्जीवाड़ा सामने आया हो। इससे पहले भी एक अधिशासी अभियंता बिजली चोरी के मामलों में राजस्व निर्धारण को लेकर सुर्खियों में रहे थे। उन्होंने बिना वरिष्ठ अधिकारियों की अनुमति के राजस्व संशोधन कर दिया था, जिसके पत्र 15 दिन बाद डिस्पैच हुए। उस मामले में डाक टिकट की कमी का बहाना बनाकर बाबू को बचा लिया गया था।
क्या है इस घोटाले का असर?
यह घोटाला विद्युत वितरण खंड ग्रामीण द्वितीय के बिलों से जुड़ा है, जिन्हें विद्युत वितरण खंड नगरीय द्वितीय में जमा किया गया। इससे न सिर्फ पावर कारपोरेशन को वित्तीय नुकसान हुआ, बल्कि उपभोक्ताओं का भरोसा भी डगमगा गया है। इस मामले ने विभाग में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी को भी उजागर किया है।
आगे क्या होगा?
फिलहाल पुलिस इस मामले की जांच कर रही है। अगर इसमें कर्मचारियों और अधिकारियों की संलिप्तता साबित होती है, तो यह पावर कारपोरेशन के लिए बड़ा झटका होगा। उपभोक्ताओं को भी सलाह दी जा रही है कि वे अपने बिल सीधे आधिकारिक माध्यमों से जमा करें और किसी भी संदिग्ध गतिविधि की जानकारी तुरंत विभाग को दें।