
बलूच लिबरेशन आर्मी ने भारत-पाकिस्तान सीजफायर के बाद पाकिस्तान को आतंकवाद का अड्डा बताते हुए भारत से तीन महत्वपूर्ण सहयोग की मांग की है। जानिए क्या है उनका दावा और भारत से क्या चाहते हैं बलूच लड़ाके।
भारत और पाकिस्तान के बीच हाल ही में हुए सीजफायर समझौते के बाद एक और बड़ा बयान सामने आया है। यह बयान आया है बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) की ओर से, जो पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में सक्रिय एक प्रमुख स्वतंत्रता संगठनों में से एक है। इस बयान में उन्होंने पाकिस्तान को “आतंकवादियों का पालक” बताया और भारत से खुलकर सहयोग की मांग की।
बीएलए का बयान: क्या कहा बलूच लड़ाकों ने?
द बलूचिस्तान पोस्ट के मुताबिक, बीएलए ने कहा है कि:
- पाकिस्तान वर्षों से आतंकवादियों को पनाह दे रहा है।
- अंतरराष्ट्रीय समुदाय विशेषकर भारत को पाकिस्तान के साथ कूटनीतिक संबंधों पर पुनर्विचार करना चाहिए।
- पाकिस्तान को खत्म करने के लिए सिर्फ तीन चीजों की ज़रूरत है—राजनीतिक, कूटनीतिक और सैन्य सहयोग।
भारत से बीएलए की 3 मुख्य मांगें
- राजनीतिक समर्थन:
बीएलए का कहना है कि भारत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बलूच आंदोलन का समर्थन करना चाहिए। इससे बलूचिस्तान के संघर्ष को विश्व स्तर पर पहचान मिलेगी। - कूटनीतिक सहयोग:
भारत यदि बलूचिस्तान के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र या अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाए, तो पाकिस्तान पर वैश्विक दबाव बनाया जा सकता है। - सैन्य सहायता:
बीएलए ने यह भी संकेत दिया है कि यदि भारत सैन्य समर्थन दे, तो वे पाकिस्तान को अंदर से कमजोर कर सकते हैं और अपनी आजादी की लड़ाई को निर्णायक बना सकते हैं।
पाकिस्तान पर आरोप: क्या है सच्चाई?
बलूच नेता लंबे समय से पाकिस्तान पर मानवाधिकार उल्लंघनों, जबरन गायब किए जाने और बलूच जनता पर अत्याचार के आरोप लगाते आ रहे हैं। हालांकि, पाकिस्तान सरकार इन आरोपों को खारिज करती रही है और बीएलए जैसे संगठनों को आतंकवादी घोषित कर चुकी है।
भारत की स्थिति
भारत ने अब तक बलूचिस्तान के मुद्दे पर आधिकारिक रूप से सीमित बयान ही दिए हैं। लेकिन 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में बलूचिस्तान का ज़िक्र किया था, जो इस विषय पर भारत की बढ़ती रुचि का संकेत था।
निष्कर्ष
बीएलए का यह बयान एक बार फिर से भारत-पाकिस्तान और बलूचिस्तान के बीच चल रही कूटनीतिक और सैन्य गतिविधियों की जटिलता को दर्शाता है। भारत के लिए यह विषय रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय नियमों और कूटनीतिक संतुलन को ध्यान में रखते हुए कोई भी कदम बेहद सोच-समझकर ही उठाया जाएगा।