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ब्लैकलिस्टेड फर्म को ₹5.28 करोड़ का ठेका: बरेली नगर निगम की कार्यशैली पर फिर उठे सवाल

बरेली नगर निगम प्रशासन एक बार फिर विवादों के घेरे में है। ब्लैकलिस्टेड फर्म परमार कंस्ट्रक्शन, जिसे 2020 में बरेली स्मार्ट सिटी कंपनी ने प्रतिबंधित किया था, को हाल ही में ₹5.28 करोड़ का ठेका दे दिया गया। यह ठेका उद्यान विभाग की ओर से शहर के डिवाइडरों, पार्कों और सड़कों की हरी-भरी देखभाल के लिए 125 माली और कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए 5 नवंबर 2024 को जारी किया गया था। इस मामले में टेंडर प्रक्रिया में हेराफेरी और अधिकारियों की मिलीभगत के आरोप लग रहे हैं, जिसके चलते नगर आयुक्त संजीव कुमार मौर्य ने जांच के आदेश दे दिए हैं। आइए, इस पूरे मामले को विस्तार से समझते हैं।


ब्लैकलिस्टेड फर्म को ठेका कैसे मिला?

परमार कंस्ट्रक्शन (आगरा) का इतिहास विवादों से भरा रहा है। वर्ष 2020 में इस फर्म ने स्मार्ट सिटी परियोजनाओं के लिए फर्जी अनुभव प्रमाणपत्र जमा कर ठेका हासिल किया था। शिकायत के बाद जांच में प्रमाणपत्र फर्जी पाए गए, जिसके चलते तत्कालीन सीईओ अभिषेक आनंद ने 3 अक्टूबर 2020 को फर्म की धरोहर राशि जब्त कर इसे ब्लैकलिस्ट कर दिया था। इसके बावजूद, नगर निगम के कुछ अधिकारियों की कथित “मेहरबानी” से यह फर्म दोबारा ठेका हासिल करने में सफल रही।

नगर निगम नियमों के अनुसार, कोई भी फर्म तब तक ब्लैकलिस्टेड मानी जाती है, जब तक सक्षम अधिकारी उस पर से प्रतिबंध नहीं हटाते। कुछ अधिकारी यह दावा कर रहे हैं कि फर्म को केवल एक साल के लिए ब्लैकलिस्ट किया गया था, लेकिन ऐसा कोई शासनादेश मौजूद नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अधिकारियों ने जानबूझकर नियमों को ताक पर रखकर इस फर्म को लाभ पहुंचाया?


टेंडर प्रक्रिया में हेराफेरी के आरोप

स्वच्छ भारत मिशन के तहत केंद्र सरकार से मिले फंड के उपयोग के लिए निकाले गए इस टेंडर में भारी अनियमितताएं सामने आई हैं। टेंडर शर्तों में बदलाव कर परमार कंस्ट्रक्शन को फायदा पहुंचाने का प्रयास किया गया।

  • ईपीएफओ की अनिवार्य शर्त हटाई गई: टेंडर नोटिस में कर्मचारियों के लिए ईपीएफ, ईएसआई और फंड चालान की स्कैन कॉपी जमा करना अनिवार्य था। लेकिन टेक्निकल चार्ट से इन शर्तों को जानबूझकर हटा दिया गया, ताकि फर्म आसानी से अर्हता प्राप्त कर सके।
  • कमेटी की संदिग्ध भूमिका: टेंडर प्रक्रिया की समीक्षा के लिए बनी कमेटी, जिसमें अपर नगरायुक्त सुनील कुमार यादव, सहायक लेखा अधिकारी एचपी नारायण और पर्यावरण अभियंता राजीव कुमार राठी शामिल थे, ने दस्तावेजों की ठीक से जांच नहीं की और बिना सत्यापन के हरी झंडी दे दी।

टेंडर तैयार करने में आउटसोर्स कंप्यूटर ऑपरेटर सतीश कुमार से लेकर टेंडर कमेटी तक की मिलीभगत के आरोप लग रहे हैं।


ठेके से जुड़े प्रमुख तथ्य

  • ठेका राशि: ₹5.28 करोड़
  • कार्यकाल: 2 वर्ष
  • कर्मचारी: 125 माली और सफाईकर्मी
  • ठेका तिथि: 5 नवंबर 2024
  • फर्म ब्लैकलिस्टिंग तिथि: 3 अक्टूबर 2020

नगर आयुक्त का बयान

नगर आयुक्त संजीव कुमार मौर्य ने मामले की गंभीरता को देखते हुए उप नगर आयुक्त, मुख्य अभियंता और लेखा अधिकारी की एक समिति गठित की है। यह समिति दस्तावेजों और GFR (जनरल फाइनेंशियल रूल्स) गाइडलाइंस की समीक्षा कर रही है। नगर आयुक्त ने स्पष्ट किया कि यदि जांच में गड़बड़ी पाई गई, तो ठेका रद्द करने के साथ-साथ फर्म और संलिप्त अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।


यह मामला क्यों है चिंताजनक?

यह घटना न केवल प्रशासनिक पारदर्शिता पर सवाल उठाती है, बल्कि करदाताओं के पैसे के दुरुपयोग की ओर भी इशारा करती है। ब्लैकलिस्टेड फर्म को ठेका देना नियमों का खुला उल्लंघन है और इससे नगर निगम की विश्वसनीयता प्रभावित होती है। अगर टेंडर प्रक्रिया में मिलीभगत सिद्ध होती है, तो यह बरेली नगर निगम के लिए एक बड़ा सबक होगा।


निष्कर्ष

बरेली नगर निगम का यह विवाद प्रशासनिक जवाबदेही और पारदर्शिता की जरूरत को रेखांकित करता है। क्या परमार कंस्ट्रक्शन का ठेका रद्द होगा? क्या दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई होगी? यह सब जांच के नतीजों पर निर्भर करता है। तब तक यह मामला जनता और मीडिया के लिए चर्चा का विषय बना रहेगा।

अगर आपके पास इस मामले से जुड़ी कोई जानकारी या राय है, तो नीचे कमेंट करें। हमें आपके विचार जानने में खुशी होगी!