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गौसेवा आयोग की बैठक: योजनाएं दमदार, लेकिन ज़मीनी सच्चाई कुछ और ही कहती है


गौसेवा आयोग की बैठक: योजनाएं दमदार, लेकिन ज़मीनी सच्चाई कुछ और ही कहती है

उत्तर प्रदेश में गोसेवा आयोग के अध्यक्ष श्याम बिहारी गुप्ता की अध्यक्षता में आयोजित मंडल स्तरीय बैठक में गौशालाओं की व्यवस्थाओं और प्राकृतिक खेती को लेकर कई महत्त्वपूर्ण निर्णय लिए गए। सरकार की मंशा स्पष्ट है—गायों की सेवा के साथ-साथ किसानों को प्राकृतिक खेती के लिए प्रोत्साहित करना। लेकिन सवाल यह है कि क्या ये योजनाएं जमीन पर भी उतनी ही प्रभावशाली हैं जितनी कागज़ों पर दिख रही हैं?

बैठक के प्रमुख बिंदु

  • गौशालाएं किसानों के लिए प्रशिक्षण केंद्र बनें
    गोसेवा आयोग की योजना है कि गौशालाएं केवल गायों के लिए आश्रय नहीं बल्कि किसानों को गौ आधारित प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण देने का केंद्र बनें।
  • महिला समूहों की सहभागिता
    उत्तर प्रदेश के 9.58 लाख स्वयं सहायता समूहों की 1.18 करोड़ महिलाओं को प्राकृतिक खेती से जोड़ने की योजना है। कृषि सखी की नियुक्ति के माध्यम से महिलाएं जीवामृत बनाना सीखेंगी।
  • बायोगैस और कैटल शेड निर्माण
    गौशालाओं में बायोगैस संयंत्र लगाए जाएंगे और मनरेगा के तहत पक्के कैटल शेड, यूरिन टैंक व नाद का निर्माण होगा।
  • गौवंश की सुरक्षा और रिकॉर्ड प्रबंधन
    गायों को दुर्घटनाओं से बचाने के लिए रेडियम बेल्ट पहनाने का सुझाव दिया गया है। साथ ही भूसे की मात्रा, दान और वितरण का पूरा रिकॉर्ड रखने की बात कही गई है।

जमीनी हकीकत: ‘ऑल इज़ वेल’ की पोल खोलती सड़कों की तस्वीर

हालांकि बैठक में अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों ने योजनाओं की सराहना की, लेकिन सड़कों और खेतों की स्थिति कुछ और ही कहानी बयां करती है:

  • आवारा गायें सड़कों पर भटक रही हैं, चारा और पानी के लिए तरस रही हैं।
  • कई गायें किसानों की रातों की मेहनत—खेतों की फसलों को नुकसान पहुंचा रही हैं।
  • आम जनता के बीच यह धारणा बनती जा रही है कि ‘कागजों में सब ठीक है, पर हकीकत में नहीं।’

क्या कहता है भविष्य?

गाय न सिर्फ भारत की संस्कृति का प्रतीक है, बल्कि खेती और पर्यावरण संरक्षण की भी महत्वपूर्ण कड़ी बन सकती है। लेकिन इसके लिए योजनाओं का ईमानदारी से क्रियान्वयन और स्थानीय स्तर पर निगरानी बेहद जरूरी है।

निष्कर्ष

गोसेवा आयोग की योजनाएं वाकई में सराहनीय हैं, पर उन्हें जमीनी सच्चाई से जोड़ने की जरूरत है। केवल आंकड़ों की बाजीगरी से नहीं, बल्कि वास्तविक परिणामों से ही गायों की सेवा और किसानों की खेती को सशक्त बनाया जा सकता है।