स्मार्ट सिटी बरेली की सच्चाई: बारिश आई नहीं कि शहर डूबा नहीं!


🌧️ स्मार्ट सिटी बरेली की सच्चाई: बारिश आई नहीं कि शहर डूबा नहीं!

स्थान: बरेली, उत्तर प्रदेश
प्रकाशन तिथि: 16 जून 2025


📌 परिचय: स्मार्ट सिटी या डूबता शहर?

जब बरेली को ‘स्मार्ट सिटी’ घोषित किया गया था, तब लोगों की उम्मीदें सातवें आसमान पर थीं। लेकिन हकीकत ये है कि महज़ 15-30 मिनट की बारिश में ही शहर की पोल खुल जाती है। हर साल जलभराव, गंदगी, बदबू और बीमारियां यहां के निवासियों का हिस्सा बन चुकी हैं।


🚨 हर साल दोहराई जाती है वही कहानी

बरेली के कई निचले इलाकों जैसे कंकर टोला, श्यामगंज, प्रेम नगर, किला और सुभाष नगर में थोड़ी सी बारिश होते ही सड़कें नहीं, नाले बन जाती हैं। नालों का गंदा पानी घरों में घुस आता है। लोग बेड, फर्नीचर, कपड़े और घरेलू सामान पानी में तैरते हुए देखते हैं।


🔍 पुराने नाले का भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ना

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि कंकर टोला का ऐतिहासिक नाला, जो पहले 10-12 फीट चौड़ा हुआ करता था, भ्रष्टाचार के चलते अब “नाली” में तब्दील कर दिया गया है। बिना निकासी व्यवस्था के बनी यह संकरी नाली बारिश में पानी निकालने में पूरी तरह असमर्थ है।

प्रश्न उठता है: जब निकास ही नहीं है, तो पानी जाएगा कहां?


🤢 गंदगी, गोबर और संक्रमण का खतरा

यह न सिर्फ जलभराव की समस्या है, बल्कि इससे जुड़े बीमारियों और संक्रमण का बड़ा खतरा भी है।
डेरियों से निकलने वाला गोबर, इंसानी मल-मूत्र और गंदा पानी लोगों के घरों तक पहुंच जाता है। हर साल डेंगू, मलेरिया, हैजा, डायरिया जैसी बीमारियों के मरीज अस्पतालों में भर्ती होते हैं।


🏘️ केवल मोहल्ले नहीं, पॉश कॉलोनियां भी बेहाल

यदि आप सोचते हैं कि यह समस्या केवल गरीब इलाकों तक सीमित है, तो आप गलत हैं।
रामपुर गार्डन, राजेंद्र नगर और सिविल लाइंस जैसे पॉश इलाके भी जलभराव से जूझते हैं। बस फर्क इतना है कि वहाँ मीडिया कैमरे कम जाते हैं।


📉 सवाल ये है: टैक्स क्यों लिया जाता है?

जब न निकासी है, न सीवर लाइन, न ड्रेनेज सिस्टम…
तो फिर हाउस टैक्स और जलकर किस आधार पर वसूला जाता है? स्मार्ट सिटी के नाम पर पैसा जरूर लिया जाता है, लेकिन मूलभूत सुविधाएं तक मुहैया नहीं कराई जातीं।


📢 अब वक्त है जागने का

अब जरूरत है कि बरेली नगर निगम, महापौर और स्थानीय जनप्रतिनिधियों से जवाब मांगा जाए।
लोगों को एकजुट होकर अपने हक की आवाज़ उठानी होगी।
यह सवाल सिर्फ कंकर टोला का नहीं, पूरे बरेली शहर की साख का है।


📌 निष्कर्ष:

“स्मार्ट सिटी” एक तमगा भर है जब तक जनता को बुनियादी सुविधाएं नहीं मिलतीं। अगर बरेली को वाकई स्मार्ट बनाना है, तो सबसे पहले जरूरत है पारदर्शिता, प्लानिंग और जनहित में ठोस कार्रवाई की।



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