जातिगत जनगणना पर भगवा परिषद की तीखी प्रतिक्रिया: क्या यह सनातन धर्म के लिए खतरा है?



भगवा परिषद के प्रवक्ता संतोष कुमार उपाध्याय ने प्रधानमंत्री मोदी द्वारा जातिगत गणना की घोषणा को सनातन धर्म और राष्ट्र के लिए खतरनाक बताया। पढ़ें पूरा बयान और विश्लेषण।


जातिगत गणना पर राजनीतिक और धार्मिक बहस तेज

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा हाल ही में जातिगत जनगणना की घोषणा के बाद देश में राजनीतिक और धार्मिक बहस तेज हो गई है। इस विषय पर भगवा परिषद के प्रवक्ता संतोष कुमार उपाध्याय का बयान खासा चर्चा में है।


भगवा परिषद का तीखा बयान

संतोष कुमार उपाध्याय ने इस निर्णय को “अदूरदर्शिता पूर्ण और राष्ट्रविरोधी” करार देते हुए कहा है कि इससे ब्राह्मण और क्षत्रिय जैसे परंपरागत रूप से योगदान देने वाले समाज कमजोर होंगे, और देश में योग्यता का कोई महत्व नहीं रह जाएगा।

उनके अनुसार, यह निर्णय केवल राजनीतिक लाभ के लिए लिया गया है, जिससे सनातन धर्म को नुकसान पहुंचेगा और बौद्ध धर्म को प्रोत्साहन मिलेगा।


“मुग़लों की नीति की पुनरावृत्ति” – संतोष उपाध्याय

उपाध्याय ने मुग़ल काल का उल्लेख करते हुए कहा कि जैसे औरंगज़ेब और अन्य शासकों ने क्षत्रियों और ब्राह्मणों को निशाना बनाकर सनातन को खत्म करने की कोशिश की थी, ठीक वैसी ही नीति अब जातिगत गणना के रूप में सामने आ रही है।


जातिगत संघर्ष और सामाजिक विघटन की आशंका

भगवा परिषद ने चेतावनी दी है कि यदि जातिगत आधार पर जनगणना की गई तो इससे समाज में विभाजन, जातीय संघर्ष और राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ावा मिलेगा। यह ना सिर्फ सामाजिक ताने-बाने को तोड़ेगा बल्कि राष्ट्र की एकता को भी कमजोर करेगा।


“जनता जागरूक हो और विरोध करे” – भगवा परिषद का आह्वान

संतोष उपाध्याय ने भारतीय जनता से आह्वान किया कि वे ऐसे निर्णयों का विरोध करें जो सनातन विरोधी ताक़तों को बढ़ावा दें। उन्होंने कहा कि आज भी आरक्षण प्राप्त करने वाले वर्ग ही बौद्ध धर्म का प्रचार कर रहे हैं और यह निर्णय उन्हें और बल देगा।


निष्कर्ष

जातिगत जनगणना पर संतोष उपाध्याय और भगवा परिषद का यह तीखा विरोध यह दर्शाता है कि यह विषय केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि गहराई से धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव वाला है। आने वाले समय में यह मुद्दा भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।



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