
15 मई से शुरू हुआ ट्रांसफर सीजन, लेकिन उत्तर प्रदेश के कृषि विभाग में यह सिर्फ एक दिखावा बनकर रह गया है। ट्रांसफर की प्रक्रिया पर बाबुओं और अफसरों की मनमर्जी, सिफारिश और सेटिंग का ऐसा कब्जा है कि नियम-कानून हाशिए पर चले गए हैं। बरेली से लखनऊ तक कई ऐसे उदाहरण सामने आ रहे हैं, जहां ट्रांसफर आदेश के बावजूद कर्मचारी वर्षों से अपनी पुरानी पोस्ट पर जमे हुए हैं।
ट्रांसफर सीजन: तारीखें तय, लेकिन फैसला बाबुओं की मर्जी से
कृषि निदेशालय लखनऊ ने 15 मई से 30 जून तक ट्रांसफर सीजन घोषित किया है। लेकिन हकीकत यह है कि किसी भी कर्मचारी का ट्रांसफर तभी होगा जब वह खुद चाहेगा या फिर उसके अफसर की इसमें स्वार्थ होगा। यहां तक कि ट्रांसफर हो चुके बाबू भी तब तक रिलीव नहीं होंगे, जब तक वह खुद न चाहें।
सेटिंग और सिफारिश की जमी हुई संस्कृति
अफसरों को मोटी कमाई पहुंचाने वाले बाबुओं की सिफारिशें सीधे लखनऊ के उच्च अधिकारियों तक भेजी जाती हैं। तर्क दिया जाता है कि “यह बाबू बहुत जरूरी है”, ताकि कोई नया कर्मचारी न आ सके। इसी बहाने हर साल ट्रांसफर सीजन के नाम पर मोटी रिश्वतखोरी और सौदेबाजी होती है।
बरेली का उदाहरण: 22 साल से एक ही दफ्तर में
1. बुलेट राजा – शिवकुमार
बरेली के डिप्टी डायरेक्टर कार्यालय में 22 साल से जमे बाबू शिवकुमार उर्फ बुलेट राजा का हाल ही में गोंडा ट्रांसफर हुआ। लेकिन एक बार लखनऊ जाकर सेटिंग कर ली, और अब केवल पटल बदला, पोस्टिंग वही।
2. गिरीशचंद्र उर्फ पहाड़ी बाबू
बरेली के ही दूसरे बाबू, गिरीशचंद्र, जिनकी आलीशान कोठी और उत्तराखंड में होटल तक हैं, भी पिछले 22 साल से एक ही जगह कार्यरत हैं। कोर्ट से स्टे लाकर ट्रांसफर रोक लिया और अफसरों ने जानबूझकर उसका विरोध नहीं किया।
3. अमित कुमार वर्मा – 11 महीने बाद भी रिलीव नहीं
29 जून 2024 को कृषि रक्षा विभाग में ट्रांसफर हुआ, लेकिन रिलीव नहीं हुए। कारण? ऊपरी कमाई का ज़रिया बने हुए हैं। जिला कृषि अधिकारी का पत्र है कि “इनके बिना ऑफिस नहीं चल सकता”, इसलिए ट्रांसफर के बावजूद जमे हुए हैं।
अफसर भी मजबूर या शामिल?
राजेश कुमार, ज्वाइंट डायरेक्टर (बरेली मंडल), खुद स्वीकार करते हैं कि अब ट्रांसफर का अधिकार उनके पास नहीं है। रिलीविंग जिला कृषि अधिकारी के हाथ में है, जो अपने “कमाऊ पूत” को छोड़ना ही नहीं चाहते।
निष्कर्ष: ट्रांसफर नहीं, पैसे और प्रभाव का खेल
ट्रांसफर सीजन की आड़ में कृषि विभाग में हर साल यही खेल चलता है—पोस्टिंग के नाम पर लेन-देन, सेटिंग, और अधिकारियों की मिलीभगत से ईमानदार कर्मचारियों को हाशिए पर और भ्रष्टों को संरक्षण।
अगर कृषि विभाग को वास्तव में पारदर्शिता और ईमानदारी की ओर ले जाना है, तो लखनऊ से लेकर जिला स्तर तक ट्रांसफर नीति को सख्ती से लागू करना होगा।