कांस्टेबल भर्ती: 25 रुपये में हो सकने वाला काम अब 12 करोड़ में? अमित शाह की संभावित मौजूदगी से सियासी गर्मी तेज


लखनऊ, जून 2025 — उत्तर प्रदेश सरकार 15 जून को एक भव्य समारोह में 60,244 कांस्टेबलों को नियुक्ति पत्र देने जा रही है। कार्यक्रम के भव्य आयोजन की तैयारी चल रही है और संभावनाएं हैं कि इस कार्यक्रम में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी शामिल हो सकते हैं। सूत्रों के अनुसार, यह आयोजन “भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी इंटरनेशनल एकाना स्टेडियम” में आयोजित होगा।

सरकार इसे युवा-रोजगार के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का प्रतीक बता रही है, लेकिन विपक्ष और सामाजिक संगठनों ने इस पर सवाल उठाए हैं।

अमिताभ ठाकुर का विरोध: “दिखावे के लिए फिजूल खर्च”

आजाद अधिकार सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमिताभ ठाकुर ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर कार्यक्रम पर 12 करोड़ रुपये से अधिक खर्च को जनता के धन की बर्बादी बताया है। उन्होंने सुझाव दिया है कि अभ्यर्थियों को स्थानीय स्तर पर या डिजिटल माध्यम से नियुक्ति पत्र भेजे जाएं, ताकि समय, संसाधन और धन की बचत हो।

उनका कहना है कि मथुरा के मात्र 1,538 अभ्यर्थियों पर ही 32.5 लाख रुपये खर्च हो चुके हैं, ऐसे में पूरे राज्य के खर्च का अनुमान 12 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है। अमिताभ ठाकुर ने तंज करते हुए कहा:

“जो काम 25 रुपये में स्पीड पोस्ट से हो सकता था, उसके लिए 12 करोड़ खर्च करना केवल राजनीतिक प्रचार और दिखावे का आयोजन है।”

विपक्ष का तंज: “प्रचार के नाम पर जनता का पैसा”

विपक्षी दलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस आयोजन को एक राजनीतिक स्टंट बताते हुए कहा है कि भाजपा सरकार इसे आगामी चुनावों को ध्यान में रखकर राजनीतिक लाभ उठाने के लिए कर रही है। सरकार की यह योजना अब जनता के बीच “रोजगार बनाम प्रचार” की बहस छेड़ चुकी है।

सरकार की मंशा: “युवा सशक्तिकरण का संदेश”

सरकारी सूत्रों का कहना है कि यह आयोजन केवल नियुक्ति पत्र वितरण नहीं बल्कि युवाओं को सशक्तिकरण और प्रेरणा देने का एक अवसर है। सरकार चाहती है कि युवाओं में रोजगार को लेकर भरोसा पैदा हो और उन्हें यह महसूस हो कि मेहनत का फल मंच पर मिल रहा है।


निष्कर्ष:

यूपी सरकार का यह भव्य आयोजन जहां एक तरफ लाखों युवाओं के लिए सपनों की शुरुआत है, वहीं दूसरी ओर यह भारी सरकारी खर्च और राजनीतिक मंशा को लेकर विवादों में घिर गया है।

अब देखना यह है कि क्या सरकार अपने रुख पर कायम रहती है या अमिताभ ठाकुर जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं की मांगों को ध्यान में रखते हुए कोई वैकल्पिक उपाय अपनाती है।



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